सावन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को हर साल रक्षाबंधन मनाया जाता है। इस पर्व में अपराह्न व्यापिनी पूर्णिमा तिथि का होना जरूरी है, और भद्रा वर्जित है। पुराणों में भद्रा को सूर्य की पुत्री और शनि की बहन बताया गया है, और किसी भी शुभ कार्य की इसकी उपस्थिति नहीं होनी चाहिए। रक्षा बंधन के दिन सुबह स्नान करके देवता, पितर, और ऋषियों का स्मरण किया जाता है। इसके बाद रक्षा सूत्र (राखी) को गाय के गोबर से लिपे शुद्ध स्थान पर रखकर विधिपूर्वक पूजा की जाती है। फिर रक्षा सूत्र को दाहिने हाथ में बंधवाया जाता है।
एक बार बारह साल तक देवताओं और असुरों के बीच युद्ध हुआ, जिसमें देवताओं की हार हुई और असुरों ने स्वर्ग पर कब्जा कर लिया। हार से निराश इंद्र अपने गुरु बृहस्पति के पास गए और कहने लगे कि मेरा युद्ध करना अनिवार्य है, जबकि अब तक के युद्ध में हमें हार ही हाथ लगी है। इंद्र की पत्नी इंद्राणी भी यह सब सुन रही थीं।
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