रामकृष्ण परमहंस जयंती
रामकृष्ण परमहंस की जयंती फाल्गुन शुक्ल द्वितीया को होती है. रामकृष्ण परमहंस भारत के महान संत, आध्यात्मिक गुरु और विचारक थे.
मां काली के प्रति इनकी गहरी श्रद्धा और आस्था थी. लेकिन इसी के साथ इन्होंने धर्मों की एकता पर भी जोर दिया. ईश्वर के दर्शन के लिए इन्होंने कम उम्र से ही कठोर साधना और भक्ति शुरू कर दी थी. कहा जाता है कि उन्हें मां काली के साक्षात दर्शन हुए थे.रामकृष्ण परमहंस का जन्म फाल्गुन शुक्ल की द्वितीया तिथि 18 फरवरी 1836 को बंगाल प्रांत के कामारपुकुर गांव में हुआ था
. इसलिए हर साल 18 फरवरी को रामकृष्ण परमहंस की जयंती मनाई जाती है. इस साल 2024 में उनकी 189वीं जयंती होगी. रामकृष्ण परमहंस के बचपन का नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था, लेकिन आध्यात्मिक मार्ग पर चलकर इन्होंने अस्तित्व संबंधी परम तत्व यानी परमात्या का ज्ञान प्राप्त किया, जिस कारण इन्हें परमहंस कहा गया.रामकृष्ण परमहंस की सारी चेतना उस प्राकृतिक मनमोहक दृश्य में समा गई और उन्हें खुद की कोई सुधबुध भी न रही और वे अचेत होकर गिर पड़े. बताया जाता है कि यही रामकृष्ण परमहंस का पहला आध्यात्मिक अनुभव था, जिससे उनके आगे की आध्यात्मिक दिशा तय हुई और इस तरह से कम उम्र में ही रामकृष्ण परमहंस का झुकाव आध्यात्म और धार्मिकता की ओर हुआ.रामकृष्ण परमहंस जब 9 साल के थे तब उनका जनेऊ संस्कार हुआ और फिर वैदिक परंपरा के अनुसार वे धार्मिक अनुष्ठान और पूजा-पाठ करने व कराने योग्य हो गए. रानी रासमणि द्वारा कोलकाता के बैरकपुर में हुगली नदी के किनारे दक्षिणेश्वर काली मंदिर बनवाया गया था,
जिसके देखभाल की जिम्मेदारी रामकृष्ण के परिवार को थी. इस तरह से रामकृष्ण परमहंस भी मां काली की सेवा करने लगे और पुजारी बन गए. 1856 में रामकृष्ण को मां काली के इस मंदिर का मुख्य पुरोहित नियुक्त किया गया और इसके बाद वे माता काली की साधना में रम गए. कहा जाता है कि, रामकृष्ण परमहंस को मां काली के साक्षात दर्शन हुए थे.
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